|| जीवन के कुछ गूढ़ रहस्य आप कभी नहीं समझ पायें ||
पांचवीं तक स्लेट की बत्ती को जीभ से चाटकर कैल्शियम की कमी पूरी करना हमारी स्थाई आदत थी | लेकिन इसमें पापबोध भी था कि कहीं विद्यामाता नाराज न हो जायें |
पढ़ाई के तनाव हमने पेन्सिल का पिछला हिस्सा चबाकर मिटाया था |
पुस्तक के बीच पौधे की पत्ती और मोरपंख रखने से हम होशियार हो जाएंगे... ऐसा हमारा दृढ विश्वास था |
कपड़े के थैले में किताब-कॉपियां जमाने का विन्यास हमारा रचनात्मक कौशल था|
हर साल जब नई कक्षा के बस्ते बंधते तब कॉपी किताबों पर जिल्द चढ़ाना हमारे जीवन का वार्षिक उत्सव मानते थे |
ये पढ़ाई-लिखायी, नौकरी चाकरी, घर बार दुकानदारी पता नही किस नालायक का आईडिया था आराम से गुफ़ाओं में रहते, रात में सोते कन्द मूल खाते और सुकून से मर जाते…
खरीदने को तो हवाई जहाज़ भी खरीद लूँ, पर फिर रिश्तेदार ताना मारेंगे कि… घर के ऊपर से गया और मिल कर भी नहीं गया…
मैंने अभी-अभी एक ख्वाब देखा है। वह सुनकर जरा मुझे इसका मतलब तो बता दो। चोर उस बूढ़ी औरत की रहमदिली से बड़ा अभिभूत हुआ और चुपचाप उसके पास जाकर बैठ गया। बुढ़िया ने अपना सपना सुनाना शुरु किया:- बेटा, मैंने देखा कि मैं एक रेगिस्तान में खो गई हूं। ऐसे में एक चील मेरे पास आई और उसने… 3 बार जोर-जोर से बोला:- *पंकज! पंक़ज! पंकज!!!* बस फिर ख्वाब खत्म हो गया और मेरी आंख खुल गई। जरा बताओ तो इसका क्या मतलब हुई? चोर सोच में पड़ गया। इतने में बराबर वाले कमरे से बुढ़िया का नौजवान बेटा पंकज अपना नाम ज़ोर ज़ोर से सुनकर उठ गया और अंदर आकर चोर की जमकर धुनाई कर दी बुढ़िया बोली:- बस करो अब यह अपने किए की सजा भुगत चुका। चोर बोला:- नहीं-नहीं! मुझे और कूटो, सालों! ताकि मुझे आगे याद रहे कि… मैं चोर हूं, सपनों का सौदागर नहीं।
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